| पहिले उसले हात समात्यो, |
| गुरूलाई सम्झें... |
| लट्ठी थाप्न गल्तीहरूमा |
| सबैले झैं हात फैलाउँदा |
| गुरू मुसार्नुहुन्थ्यो मेरा हात समाई |
| कुनै ईखालु केटोको हातमा पर्थ्यो |
| मेरो भागको सजायँ पनि |
| मेरो रूपलाई |
| मेरै दुश्मन बनाइदिने पहिलो मानिस |
| मेरै गुरू हुन... |
| मैले हात छुटाउन बल लगाइन ! |
| अनि उसले मेरो मुख थुन्यो, |
| आमालाई सम्झें... |
| अलिकती जोडले हाँस्दा खुसीहरूमा |
| ‘उत्ताउली भइस्’ भन्नुहुन्थ्यो आमा |
| हतपत मुख ढाक्थें हत्केलाले ढपक्कै ! |
| आमा सिकाउनुहुन्थ्यो- |
| ‘छोरी भए पछि शूसिल र सहनशील हुनुपर्छ’ |
| आमाका उपदेशलाई सम्झिरहें... |
| मुख बाट उसको हात पनि हटाइन ! |
| त्यसपछि उसले आँखामा रूमाल बाँध्यो, |
| दाजुलाई सम्झें... |
| बेरेर नभ्याउँदै समयको लट्टाइमा |
| रहरको चंगाको धागो |
| दाजुका जूँगाको धारले |
| धागो काटिदिन्थ्यो सधै |
| बिलाइजान्थ्यो चंगा कतै ! |
| ‘साँझ छिटो पर्छ बैनीहरूलाई’ |
| केही नभनेरै यसै भन्थे दाजै सधै |
| एउटै घरमा फरक घडी हेरेर हुर्केकी मैले |
| यसपली आँखा बाट |
| रूमाल पनि हटाइन ! |
| अब उसले हात पुर्यायो छातीमा, |
| बाबालाई सम्झें... |
| बाबाको पिठ्यूँ |
| मेरो सवारी बन्न त्यसै दिन देखि छोडेथ्यो |
| जुन दिन देखि मेरा छातीहरू |
| उहाँलाई बिझाउन थालेथे ! |
| तेह्र देखि बिझाउन थालेका छातीहरू |
| तेइस सम्म बिझाइरहँदा |
| कती बोझिलो भयो होला उहाँको छाती ?! |
| बाबाको बोझलाई मैले |
| आफ्नो छातीमा सार्ने निधो गरें ! |
| र |
| अन्त्यमा उसले धावा बोल्यो |
| अस्तित्वको मुहानमा ! |
| प्रेमीलाई सम्झें... |
| ‘कसैले नबुझे पनि तिमीलाई मैले बुझ्छु’ भन्थ्यो |
| ‘कतै टाढा एउटा छुट्टै संसारमा लैजान्छु’ भन्थ्यो ! |
| र लैजान्थ्यो त्याहाँ |
| जहाँ सुगन्ध हुँदैन्थ्यो, केवल वासना हुन्थ्यो ! |
| विस्वासको घडामा |
| उसैले हो सबै भन्दा पहिले प्वाल पारेको |
| उसैले हो सपना देख्ने आँखाहरूमा |
| आँशुको आहल थुपारेको ! |
| सम्झेर ल्याउँदा |
| सबै थोक |
| सबै जना |
| सबै घटना |
| अकस्मात् मलाई |
| बलात्कारी संग प्रेम भयो !! |
| .............. |
| दुरान फर्काउन आएकी दिदीले |
| आफ्नो प्रेमकथा बैनीलाई |
| यसरी नै सुनाइन !! |
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